आगरा में मानव और बंदरों के बीच बढ़ते संघर्ष पर कैसे हो काबू

Agra

आगरा । सकारात्मक दृष्टिकोण तथा धार्मिक अर्थों के बावजूद, मानव और बन्दरों के संघर्ष के मामले बढ़ रहे हैं। इस तरह का प्यार-नफ़रत का रिश्ता कई शहरों में दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुके हैं । आगरा और दिल्ली जैसे शहरों में बंदरों के कारण जन जीवन बहुत कठिन हो गया है।
अब बंदरों के साथ रिश्ता उतना सहज नहीं है जितना अपेक्षित था , इसमें काफी दैनिक जीवन में बहुत मोड़ आते हैं साहचर्य से लेकर संघर्ष तक। इस सम्बन्ध में किये कुछ शोधों का मानना है कि यह प्रावधानित शहरी भोजन जानवरों के लिए बहुत अच्छा नहीं है। यह हार्मोनल असंतुलन का कारण बनता है, तनाव और आक्रामकता बढ़ाता है, और उनके व्यवहार और प्रजनन पैटर्न को संशोधित करता है। इसे आमतौर पर “शहरी वन्यजीव सिंड्रोम” कहा जा सकता है।
विशेषज्ञों की सलाह है यदि अगली बार जब आप किसी बंदर को खाना तलाशते हुए देखें, तो उसे खाना न खिलाएं। यह आपका सबसे अच्छा कदम हो सकता है जो आप अपने और वन्य जीवन के लिए कर सकते हैं।
वनों की कटाई, कृषि, प्राकृतिक संसाधनों की हानि और शहरीकरण के कारण जंगली आवासों का अतिक्रमण लगातार बढ़ रहा है। भारत के शहरीकृत ब्लॉक धीरे-धीरे प्राकृतिक आवास की जगह ले रहे हैं। इसके बाद, बंदर अपने प्राकृतिक वातावरण से दूर चले गए और मानव बस्तियों में अपना रास्ता बना लिया। यह चिंताजनक बदलाव अंततः मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की संभावनाओं को बढ़ाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में बंदरों का एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि लोग उन्हें बंदर-भगवान हनुमान से जोड़ते हैं।

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