
रसगुल्ले मिठाई का जन्म कैसे हुआ और कहाँ हुआ जानें
भारत के कोने कोने में रसगुल्ला एक प्रिय मिठाई है। लोग इसे अलग अलग नाम से पुकारते हैं , जैसे रसगुल्ला, रोशोगुल्ला या रसबरी भी इसे कहा जाता है। एक लंबे समय से बंगाली और ओडिया लोग इस बात पर एक दूसरे से सहमत नहीं थे कि इसकी खोज किसने की। किन्तु 14 नवंबर 2017 को रसगुल्ले के लिए भौगोलिक पहचान (जीआई) टैग पश्चिम बंगाल को मिला ।
इस सम्बन्ध में कई कहानियाँ प्रचलित हैं । बंगालियों का कहना है कि इसे 1868 में नवीन चंद्र दास ने बनाया था, और फिर उनके परिवार की अगली पीढ़ियों ने इसे लोकप्रिय बनाया। नवीन चंद्र के परपोते धीमान दास इस कहानी को इस प्रकार बताते हैं।
नबीन चंद्र दास ने सबसे पहले 1864 में जोरशांको में मिठाई की दुकान खोली थी। लेकिन जल्द ही उनका कारोबार बंद हो गया और दो साल बाद उन्होंने बागबाजार में एक और दुकान खोली। श्री दास ने तय किया कि वे आम मिठाइयाँ नहीं बेचेंगे, वे एक ऐसी मिठाई बनाना चाहते थे जो पूरी तरह से उनकी बनाई हुई हो। उन्होंने चीनी की चाशनी में छैना के गोले उबालने की कोशिश की, लेकिन वे बिखर जाते। किन्तु उन्होंने इसका हल निकला और रीठा का इस्तेमाल करके और छैना के गोले को स्पंजी बनाने के लिए बुलबुले बनाकर इस समस्या का समाधान किया। लगातार प्रयास के बाद, वे गोले को एक साथ रखने की कला में निपुण हो गए और इस तरह रसगुल्ला का जन्म हुआ। उनके ग्राहकों को यह बहुत पसंद आया।