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इंडो पर्सियन वास्तुकला के लैंडमार्क चीनी का रोजा को मिले पूर्ण संरक्षण

आगरा – चीनी का रोज़ा को इंडो पर्सियन वास्तुकला में एक मील का पत्थर माना जाता है।  यह भारत की पहली इमारत है जिसे विशेष रूप से चमकती हुई टाइल्स से सजाया गया था । हालांकि यह जीर्ण शीर्ण अवस्था में है, लेकिन फिर भी इसकी शिल्पकला देखने लायक है।इस स्मारक में एक तरफ नीले पत्थर की खूबसूरत वास्तुकला है जो दूसरी तरफ बिलकुल गायब है।ऐसी सुंदर कृतियों का कोई रखरखाव नहीं किया जा रहा है । यदि इसे पूरी तरह संरक्षण नहीं मिला तो धीरे धीरे समस्त नीले पत्थर गायब हो जायेंगे । 1635 में निर्मित, चीनी का रोजा स्मारक यमुना के एक ही तरफ प्रसिद्ध एतमाद उद दौला से सिर्फ एक किलोमीटर उत्तर में स्थित है, लेकिन लापरवाही के कारण गंभीर संकट में है।भारत में एकमात्र शुद्ध फारसी वास्तुकला यहाँ होने के कारण इस स्मारक का नाम दुनिया भर की टूरिस्ट गाइडों में देखा जा सकता है। इसे शीघ्र संरक्षित करना अति  महत्वपूर्ण है।

यह स्मारक  ग्लेज़ेड टाइल के काम सजी यह भारत की पहली इमारत है।स्मारक का नाम चीन से लाई गई रंगीन टाइलों से जुड़ा  है। स्मारक की बाल्कनियाँ यहाँ का एक अन्य आकर्षण हैं जिसमें सुन्दर इनले वर्क और सुन्दर चीनी टाइलें देखी जा सकती हैं। इस स्मारक में नाजुक पिएत्रा काम को प्रचुर मात्रा में देखा जा सकता है। बिना संरक्षण के समय के साथ स्मारक की पेंटिंग तथा सुन्दर टाइल्स  क्षतिग्रस्त होती जा रही  हैं। 

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